पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Piaget's Cognitive Development Theory)
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार मुख्य चरणों में बाँटा है:
- संवेदनात्मक-गतिविधि चरण (Sensorimotor Stage) – 0 से 2 वर्ष: इस चरण में बच्चे अपनी इंद्रियों (दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, स्वाद, गंध) और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से दुनिया को समझते हैं। वे वस्तु स्थायित्व (object permanence) सीखते हैं, यानी वे यह समझते हैं कि चीजें तब भी अस्तित्व में रहती हैं जब वे दृश्य से बाहर हो जाती हैं।
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पूर्व-कार्यात्मक चरण (Preoperational Stage) – 2 से 7 वर्ष: इस अवस्था में बच्चे प्रतीकात्मक सोच विकसित करते हैं, जैसे कि शब्दों या चित्रों का उपयोग करके चीजों को व्यक्त करना। हालांकि, वे अभी भी तार्किक सोच और अव्यक्त संकल्पनाओं (जैसे समय, कारण) को पूरी तरह से नहीं समझ पाते हैं। इस चरण में "सेंटरिंग" (centering) की प्रवृत्ति होती है, जहाँ बच्चे किसी एक पहलू पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं और अन्य पहलुओं की अनदेखी करते हैं।
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तार्किक-कार्यात्मक चरण (Concrete Operational Stage) – 7 से 11 वर्ष: इस चरण में बच्चे तार्किक सोच में सक्षम होते हैं, लेकिन यह सोच मुख्यतः ठोस और वास्तविक वस्तुओं तक सीमित होती है। वे वर्गीकरण, सीरियेशन (संवेदनाओं को एक निश्चित क्रम में रखना), और संरचनात्मक संबंधों को समझने में सक्षम होते हैं।
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संचारी-कार्यात्मक चरण (Formal Operational Stage) – 11 वर्ष और उससे ऊपर: इस अंतिम चरण में बच्चे और किशोर अधिक अमूर्त (abstract) और सिद्धांतिक सोच विकसित करते हैं। वे समस्याओं को हल करने में ज्यादा स्वतंत्र होते हैं, और संकल्पनात्मक या भविष्य के परिपेक्ष्य में सोच सकते हैं। इस अवस्था में वे संभावनाओं, विचारों, और सिद्धांतों पर भी विचार कर सकते हैं, जो पूरी तरह से तर्कसंगत होते हैं।
पियाजे का यह सिद्धांत संज्ञानात्मक विकास को एक सक्रिय प्रक्रिया मानता है, जिसमें बच्चे अपने अनुभवों के द्वारा जानकारी प्राप्त करते हैं और उसे समझने के लिए मानसिक संरचनाएँ (Schemas) बनाते हैं। जब बच्चे नए अनुभवों से मिलते हैं जो उनके मौजूदा मानसिक ढांचे से मेल नहीं खाते, तो वे संवेदनशीलता (Assimilation) और अनुकूलन (Accommodation) की प्रक्रियाओं के माध्यम से अपने विचारों को समायोजित करते हैं।
इस सिद्धांत का उद्देश्य यह बताना था कि बच्चे केवल छोटे वयस्कों की तरह नहीं होते, बल्कि उनका मानसिक विकास एक विशेष क्रम में और उनके अनुभवों के आधार पर होता है।
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत मानसिक विकास के बारे में गहरी समझ प्रदान करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, संज्ञानात्मक विकास केवल आयु के साथ नहीं बढ़ता बल्कि यह मानसिक संरचनाओं, या स्कीमाज (Schemas) के रूप में व्यवस्थित होता है, जिनके माध्यम से बच्चा नए अनुभवों को समझता और स्वीकार करता है। पियाजे का यह सिद्धांत बच्चों की सोच को विभिन्न विकासात्मक चरणों के माध्यम से बढ़ने के रूप में देखता है, जो अनुभव और पर्यावरण के साथ बदलाव के परिणामस्वरूप होता है।
पियाजे के सिद्धांत के अन्य महत्वपूर्ण पहलु:
1. स्कीमा (Schema):
पियाजे के अनुसार, स्कीमा वह मानसिक ढांचा है जो बच्चों को किसी चीज़ को समझने में मदद करता है। यह मानसिक रूप से संगठित जानकारी का एक संग्रह होता है, जो बच्चे की सोच और अनुभव के अनुसार बनता है। जैसे-जैसे बच्चे का अनुभव बढ़ता है, वैसे-वैसे उनके स्कीमा भी परिपक्व होते जाते हैं।
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Assimilation (संवेदनशीलता): जब बच्चा पहले से मौजूद स्कीमा का उपयोग करके नए अनुभवों को समझता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो पहले से जानता है कि गाय एक जानवर है, अब किसी अन्य बड़े जानवर को देखकर उसे भी गाय के रूप में स्वीकार करता है।
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Accommodation (अनुकूलन): जब बच्चा नए अनुभवों को समझने के लिए अपने स्कीमा को बदलता है या नया स्कीमा बनाता है। उदाहरण के लिए, जब बच्चा किसी नए जानवर को देखता है, तो वह पहचानता है कि यह गाय नहीं है और उसे अलग से पहचानने के लिए नए स्कीमा की आवश्यकता होती है।
2. संतुलन (Equilibration):
पियाजे के अनुसार, संतुलन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा अपने मानसिक विकास को संतुलित करता है। जब बच्चा अपने पर्यावरण से मिलने वाली जानकारी के साथ संघर्ष करता है, तो वह असंतुलन (Disequilibrium) का अनुभव करता है। इस असंतुलन से बाहर निकलने के लिए बच्चा संवेदनशीलता और अनुकूलन के माध्यम से अपने विचारों को नया रूप देता है, जिससे फिर संतुलन स्थापित होता है।
3. विकासात्मक प्रक्रिया:
पियाजे का मानना था कि संज्ञानात्मक विकास निरंतर और क्रमबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें बच्चे प्रत्येक चरण से अगले चरण तक पहुँचते हैं। इस प्रक्रिया को संवेदनशीलता और अनुकूलन के साथ जोड़कर समझा जा सकता है।
- संवेदनशीलता (Assimilation): बच्चा किसी नए अनुभव को पहले से स्थापित स्कीमा में फिट करता है।
- अनुकूलन (Accommodation): बच्चे को नया अनुभव समझने के लिए अपने स्कीमा को बदलना पड़ता है।
4. सार्वभौमिकता (Universality):
पियाजे का मानना था कि संज्ञानात्मक विकास हर बच्चे में समान रूप से होता है, हालांकि वे इसे विभिन्न संस्कृतियों या स्थितियों में अलग-अलग तरीके से अनुभव कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि बच्चे सभी जगह समान विकासात्मक चरणों से गुजरते हैं, हालांकि उनकी गति या अनुभव में भिन्नता हो सकती है।
5. संज्ञानात्मक विकास के सामाजिक आयाम:
पियाजे के सिद्धांत को अक्सर एक व्यक्ति-केंद्रित सिद्धांत के रूप में देखा जाता है, जिसमें बच्चों के मानसिक विकास पर बाहरी कारकों का बहुत कम प्रभाव माना जाता है। हालांकि, पियाजे ने स्वयं माना था कि बच्चों का सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश उनके मानसिक विकास को प्रभावित करता है। अन्य शोधकर्ताओं ने इस पक्ष पर ध्यान केंद्रित किया और इसे पियाजे के सिद्धांत के साथ मिलाकर देखा।
पियाजे के सिद्धांत के प्रभाव:
शिक्षण में योगदान: पियाजे के सिद्धांत ने शिक्षकों को यह समझने में मदद की कि बच्चे विभिन्न चरणों से गुजरते हैं और प्रत्येक चरण में उनकी सोच की क्षमता अलग होती है। इसके आधार पर शिक्षक अपनी शिक्षण विधियों को अनुकूलित कर सकते हैं।मनोविज्ञान में योगदान: पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है। इसके माध्यम से यह समझने में मदद मिलती है कि बच्चे किस तरह से जानकारियाँ ग्रहण करते हैं और उनका मानसिक विकास कैसे होता है।
सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य: पियाजे का सिद्धांत यह बताता है कि मानसिक विकास किसी विशिष्ट सांस्कृतिक संदर्भ से प्रभावित नहीं होता, लेकिन समाज और संस्कृति से अलग-अलग बच्चों का अनुभव विभिन्न हो सकता है।
आलोचना:
हालांकि पियाजे का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण था, कुछ आलोचकों ने यह भी तर्क किया कि पियाजे ने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में अधिक साधारण या रूढ़िवादी दृष्टिकोण अपनाया। उनके अनुसार बच्चों की सोच के बारे में पियाजे की परिभाषाएँ बहुत सामान्य थीं, और बच्चों की विकासात्मक गति को पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, उन्होंने बच्चों के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ की महत्ता को पर्याप्त रूप से नहीं समझा।
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत बच्चों की मानसिकता और सोच के विकास को समझने में एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह सिद्धांत शिक्षा, मनोविज्ञान और अन्य संबंधित क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से लागू होता है।

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